सास को तो अगिननत दुनिया देखन का दाव
तो दामाद क्या खुद सास को अदर सुन साव
दुनिया भी तो दामाद को अपने हिसाब से अब ताव-हाव
घर के अदर तो फिर बहे बी भरपूर भाव
मु()खोटे कितने बेव(_oop)फ बोते बा
अनजान को जान के अंधा धुंध अदर लड़ते लाडे ला
और जब खुद को जान-ते जा जब जहा जा खोटा खाह
अदर आने का रास्ता अब साफ़ सा तो बाहर बाते भरी मौत के भार के मुह मे
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शरीर का क्या है
कश्टो की सतु(क)ष्टि तो धड़ को धोहि
शरीर तो सहा सही सुत जो ना लड़े तो लारपूर लुट
जब तुम-हारो ने सास के दामाद को अगिननत दुनिया की
हवा-ले हार हरा तो शरीर क्या साफ़ हम हरेंगे
