दा दयाद द्वार


काल्कि आधे बिंदु द्वार दहि दौड़ा दायाँ

आधे बिंदु आमने सारा दिन आज ख़ाली खाया

ख़ाली माँ का रात काला आधा सामने साया

आँखों में खूह खुला खंड खरपूर खमाया

सारथी सा साथ सखाया ख़ाली समाया

गोदी को-ख

सृष्टि गोदी की कोख में आधे अभी लाते तारनी तीख तहा ता


हाँ गोदी कोख ख़ाली आधे बाहर नहीं निका(ह)लेगी


ख़ाली सीख सही सा आधे जमन जही जोगा

ख़ाली खोज्या ख़याली खोला

यू आल

क्युकी 2 काल्कि

आधे है काल की सारी ख़ाली छईया

तुम आके अपनी मे ढूढो भरपूर बईया

mir(or-a)cle की चाहिए दईयां


गोदी का गमल तो ख़ाली कीचड में ही खिलता

गांठ गड़े गढ़ों गा गईयां

ख़ाली अईया

सृष्टि मईया की गोदी में हमारे सोने की नईया

नदी तैरती ताए घर का ख़ाली खिवईया

नौका सांसो की भीतर ख़ाली सहज सिवईयां

अंतर्लीन अंदर आँखे विभोर ख़ाली अईया

ह(र)जार

काल्कि का अंदर ख़ाली अवतार


gut मे प्रलय की लय का उप-चार


पुराणों मे न दिखा लिखावट का ख़ाली नार


सांसे ख़ाली अंदर अनंत आर-पर


ख़ाली घर अखंड भीतर आधार


ख़ाली टेक धरो दिव्यां-ज्योति के ह(र)जार

सुर-सागर मंथन

गोदी के अमृत के लिए


असुरो और सुरो के बीच में सुर-आ()गर मंथन


सुरो के हाथ है केतु की पूँछ (नहीं होगी सफ़ेद मूंछ) और असुरो के पास राहु की धड़

(आगे से पकड़ पीछे है जकड)


तभी तो जब-अब देखो


तूतू मे मे दुनिया का एक दिन तू खुद ही

सास की धड़ ख़रीदेगा या खरोंदेगा


अपवित्र असुर

घर के अदर ही सास रौदेगा