गुरु भगवन खाड़े खोड़ खे
सांसे लिए ज़मीन पैर अंदर मिलाए
गोदी की मईया ऐसा सुरूर सा सोए
सब अपने अंदर खाये-जाये खोये-मोये
बू-की वानी ना घोलिये जो गोदी दुलारी ना सुलाए
मन का भरपूर आपा भुलाइये जो बैरी जग वेहला बतियाये
जिनको मन की खोजनी आपे अंदर गम होये
बैरी ज़ुबान जा जंदर जोर झाके जोये
अदर नहीं रौशनी राते रोम रोम रोये
चार दीवारी भरपूर चारी सो अदर धरे मधोये
अब बैठ ख़ाली खुद और ख़ाली खोज खैर खाये
चिता की चरपूर चका-चक चाक
कलेजा काटे कत अदर आत-कात
बिगड़ो बन बुया बा बद बरे बया बात
तब तहा तिलाये अदर ख़ाली खात
