बर बदलो बति

आया आधा जन्म जाती
सब कुछ कितना नया नया नगा नाती

आधे का राहु-केतु भी ख़ाली खो देता
ख़ाली कब्र भी इधर उधर रो रेता
बुँदियाँ रखवाली अंदर बाहर नाचे नचिकेता

ज़रा सी ख़ाली समझदारी दे गोदी देती सब सुला

रही बात घर बदलने की तो
गोदी में घर एक दिन में नहीं बदलते

कितने भरपूर आधा जन्म भटकते
तूफानी रात मे भी न अदर रोते
दिन्दा दिली से रूह को दगते
समा(दा)ज आज नही बदले बाते

जल्दी जला

हमें तो कुछ-कुछ समझ सारा
यह शाति बायी क्यो उकसा रहा
हमें ही घर से बाहर निकलवा अहा
इस के तो काल के अदर कूडा काला
बहुत कुछ मिल—-भगत सगता साला
घर है दगना उछाल जल्दी वाला जाला
इसने सब है घर के अदर पता लिया
हम क्या करते है हर रोज पिया
देखे ध्यान से धार न धरे दिया
क्या उपाये है अंदर जिया

घर का मालिक ही न सुने
अनसुने आधे ध्यान धिया

त्यार तरो

हमें तो करनी है गोदी की ज़मीन हरी

जो भी इसमे आया करपूर करमो का कमाया
भरपूर भय से भूरा भाया

हमें मोह-माया के ख़ाली ने समझाया

अब आन से है लड़ना घर के अदर झडना
कैसे कहे कितना कम कहा करना